कलम जब भी उठाता हूँ Poem by vishwas kumar

कलम जब भी उठाता हूँ

कलम जब भी उठाता हूं, दुश्मन के छक्के छुड़ाता हूं
नहीं मुझे कल की फिकर है,
मैं सिर्फ आज और आज का ही दीदार कराता हूं
कलम जब भी उठाता हूं, दुश्मन के छक्के छुड़ाता हूं|
दुश्मन को न करेंगे माफ,
और करेंगे और कर के ही रहेंगे भ्रष्टाचार साफ
दुश्मन ऐसे ही कराता रहेगा
हमें हमारी मूर्खतापन का अहसास
अब तो जागो मेरे नेताओं तुम आज,
तुम ही कर सकते हो भ्रष्टाचार का खात्मा,
और दिला सकते हो हमें इन्साफ
कहने को तो बहुत कुछ है,
पर तुम्हें न समझ आयेगा कुछ खास,
दुश्मन के भी छक्के छुड़ा दो तुम आज,
पहने आतंकवाद का नकाब, कहता कुछ और
और करता सिर्फ नाश है,
तुम्हें आज फिर ये अहसास दिलाता हूं,
कलम जब उठाता हूं, दुश्मन के छक्के छुड़ाता हूं
मुझे न ही कल की फिकर थी और
न ही कल की फिकर है,
तुम आज से ही शुरु कर दो संहार,
कल क्या होगा देखा जाएगा,
जो भी ऊपर वाले ने किस्मत मे लिखा है झेला जाएगा,
आज फिर मै तुम्हे पुकार रहा हूं,
सोचकर अपने देश की हालत रोता जा रहा हूं,
पर फिर भी मै लोगों को तुम पर यकीन कराता हूं,
कलम जब भी उठाता हूं, दुश्मन के छक्के छुड़ाता हूं|||
धन्यवाद

कलम जब भी उठाता हूँ
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