तन्हाइयों में मेरी तुम आया न करो.
अर्ज तुमसे है दिल ये दुखाया न करो.
खंजरे अक्स तेरा सीने में उतर जाता है.
ये जुल्मो-सितम मुझ पे यूँ ढाया न करो.
मेरे आंसुओं का दरिया मुझको निगल रहा है.
डूबे हुए को यूँ तो डुबाया न करो.
ये रूप ये यौवन ये गेसुओं की घटायें.
मदिराये-हुस्न मुझको पिलाया न करो.
मैं दर्द का मंजर हूँ झेला है हर सितम.
ऐसे में 'सुमन'मुझको सताया न करो.
जिस्त मेरी ही 'सुमन'मुझसे करती है शिकायत.
कहती है मुझको यूँ तो रुलाया न करो.
उपेन्द्र सिंह 'सुमन'
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
बहुत सुंदर, वाह... वाह! कविता में अभिव्यक्ति का यह अंदाज़ बहुत भाया. धन्यवाद, उपेन्द्र जी. एक सुझाव: निम्न पंक्तियों में मदिरा-ए-हुस्न के स्थान पर शराब-ए-हुस्न लिखना ज्यादा उचित होगा (मदिरा हिंदी का शब्द है) . ये रूप ये यौवन ये गेसुओं कि घटायें. मदिराये-हुस्न मुझको पिलाया न करो.
शुक्रिया