साकी तेरी शराब
आँखों में उतर आई साकी तेरी शराब.
बादल सी बन के छाई साकी तेरी शराब.
ये सावन का महीना ये बरसात का मौसम.
घटाओं में है समाई साकी तेरी शराब.
रिमझिम बरसती बारिस में भींगता बदन.
फिर झूम के लहराई साकी तेरी शराब.
चिलमन की ओट में वो हुस्न कातिलाना.
लेती है अब अंगड़ाई साकी तेरी शराब,
अंगूर की बेटी के आग़ोश में है दुनियां.
हर शय में है समाई साकी तेरी शराब,
हुस्न की परी के जलवों का जिक्र क्या.
जेहन में उतर आई साकी तेरी शराब.
फ़िज़ाओं में रंग घोले उसने बहुत ‘सुमन’.
दे गई मुझको तन्हाई साकी तेरी शराब.
हिज्र कि घड़ी ये दिल पे है सितम ढाती.
ले के याद उनकी आई साकी तेरी शराब.
उपेन्द्र सिंह ‘सिंह’
Kya Khooob Likha hai! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! !
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'saki teri sharab' ek bemisaal ghazal hai jise padh kar maine bahut enjoy kiya. dhanywad.