फैशन के दौर में
दुनियाँ है परेशान फैशन के दौर में.
मारा गया इंशान फैशन के दौर में.
सुन ले जो हक़ीकत हिल जाये जमाना.
इज्जत हुई नीलाम फैशन के दौर में.
आँखों से हया लुट गई मैं और क्या कहूँ.
नाच सड़कों पे सरेआम फैशन के दौर में.
बढ़ती हुई हवस का ना ठौर ना ठिकाना.
सूली पे है ईमान फैशन के दौर में.
कैसे करु मैं क्या कि बदल जाये ज़माना.
घायल है स्वाभिमान फैशन के दौर में.
‘डेटिंग’ की ज़िद को ले के पापा बरस पड़े.
बिटिया हुई ज़वान फैशन के दौर में.
ज़ुल्फों रंग भर के इठलाती तितलियाँ.
पीछे पड़े हैवान फैशन के दौर में.
छेड़ने से उनको कब चुकते हैं लोफ़र.
हैं गलियों में घमासान फैशन के दौर में.
बिटिया नहीं है सुनती पापा हैं खानदानी.
घर में उठा तूफ़ान फैशन के दौर में.
आखों पे काले चश्में तन पर न दिखते कपड़े.
तहज़ीब है तमाम फैशन के दौर में.
दी लाख हिदायत पर आँखें नहीं ये सुनतीं.
ये दिल है बेईमान फैशन के दौर में.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
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