दिल खोजता है Poem by Upendra Singh 'suman'

दिल खोजता है

दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.
आसां नहीं है इससे अब करना बहाना.

समझे जो मेरी बात तो मैं इसको बताऊँ.
लगता नहीं है ये दिल मेरा मैं कैसे लगाऊँ.
कोशिशें बहुत की फिर भी नहीं ये माना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.
आसां नहीं है इससे अब करना बहाना.

समझे जो मेरी बात तो मैं इसको बताऊँ.
लगता नहीं है ये दिल मेरा मैं कैसे लगाऊँ.
कोशिशें बहुत की फिर भी नहीं ये माना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना........
हमने हैं बहुत देखे तनहाइयों के मेले.
ज़िन्दगी की राह में चलते रहे अकेले.
मस्ती में रहा डूबा बेदर्द ज़माना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.......
चैन लुटा नींद उडी बेचैन रातें.
ना जाने कब होंगी उनसे मुलाकातें.
अपनी ही धुन में खोया जैसे कोई दीवाना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.......
मंज़िल कहाँ न जाने खोई है किस जहाँ में.
कटती रही ये ज़िन्दगी अपनी तो इम्तहां में.
ये जिस्त की हकीकत लगती मगर फ़साना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना........
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’



ठिकाना........
हमने हैं बहुत देखे तनहाइयों के मेले.
ज़िन्दगी की राह में चलते रहे अकेले.
मस्ती में रहा डूबा बेदर्द ज़माना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.......
चैन लुटा नींद उडी बेचैन रातें.
ना जाने कब होंगी उनसे मुलाकातें.
अपनी ही धुन में खोया जैसे कोई दीवाना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.......
मंज़िल कहाँ न जाने खोई है किस जहाँ में.
कटती रही ये ज़िन्दगी अपनी तो इम्तहां में.
ये जिस्त की हकीकत लगती मगर फ़साना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना........
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’



दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.
आसां नहीं है इससे अब करना बहाना.

समझे जो मेरी बात तो मैं इसको बताऊँ.
लगता नहीं है ये दिल मेरा मैं कैसे लगाऊँ.
कोशिशें बहुत की फिर भी नहीं ये माना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना........

हमने हैं बहुत देखे तनहाइयों के मेले.
ज़िन्दगी की राह में चलते रहे अकेले.
मस्ती में रहा डूबा बेदर्द ज़माना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.......

चैन लुटा नींद उडी बेचैन रातें.
ना जाने कब होंगी उनसे मुलाकातें.
अपनी ही धुन में खोया जैसे कोई दीवाना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना.......

मंज़िल कहाँ न जाने खोई है किस जहाँ में.
कटती रही ये ज़िन्दगी अपनी तो इम्तहां में.
ये जिस्त की हकीकत लगती मगर फ़साना.
दिल खोजता है यार अब तो कोई ठिकाना........


उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Sunday, November 22, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
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