श्रमदेव Poem by Upendra Singh 'suman'

श्रमदेव

श्रमदेव तुम्हारी जय हो,
श्रमदेव तुम्हारी जय हो,
छल-प्रपंच की इस दुनिया में,
श्रम की सदा विजय हो.
श्रम सार्थक सत्य अभय हो.
श्रमदेव तुम्हारी जय हो.............

खून-पसीना एक करें सब.
दुनिया श्रमजीवी मय हो.
आलस्य भगे दुःख की क्षय हो.
श्रमदेव तुम्हारी जय हो..............

उ.सिं 'सुमन'

Tuesday, December 1, 2015
Topic(s) of this poem: work
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success