स्वार्थ Poem by Upendra Singh 'suman'

स्वार्थ

Rating: 5.0

स्वार्थ संसार का विधायक तत्व है,
स्वार्थ जीवन का सत्व है.
स्वार्थ कल्याणकारी है,
उपकारी है.
यह मानव की मूल प्रवृति है,
जीवन की वृति है,
स्वार्थ समाज का आधार है,
स्वार्थ से ही जगत का व्यवहार है.
ये स्वार्थ न हो तो –
जीवन की कड़ियाँ टूट कर बिखर जायेंगी,
संसार की आत्मा मर जायेगी.
स्वार्थ संसार का संचालक है,
स्वार्थ संबंधों का पालक है.
स्वार्थ से ही संसार है,
अन्यथा सब कुछ निस्सार है.
वस्तुतः
जीवन में स्वार्थ अनिवार्य है,
अपरिहार्य है.
परन्तु,
स्वार्थ को भोजन में
नमक की भांति अपनाना चाहिए,
जीवन में स्वार्थ समुचित संतुलन बनाना चाहिए.
स्वार्थ रहित जीवन भयंकर है
अभिशाप है,
परन्तु,
अत्यधिक स्वार्थ प्रलयंकारी है
सर्वनाश है.

Wednesday, December 2, 2015
Topic(s) of this poem: selfish
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 02 December 2015

स्वार्थ से ही संसार है, जीवन में स्वार्थ अनिवार्य है, अपरिहार्य है / स्वार्थ जैसे अवांछित तत्व की आपने ऐसी व्याख्या की है कि यह हर व्यक्ति के लिए वांछित तत्व बन जाता है बशर्ते इसे आटे में नमक की तरह जीवन में स्थान दिया जाये. धन्यवाद, मित्र.

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