ये ग़ज़ल है या क्या है.....ये मैं नहीं जानता. गीत, ग़ज़ल का चक्कर तो आप ही जानें. मैं तो महज़ इतना जानता हूँ कि ये मेरी महबूबा के लिए मेरे दिल की गहराइयों से निकले कुछ हुए शब्द हैं जिन्हें मैंने कागज पर उकेर दिया था और आज़ वे ज्यों के त्यों आपके सामने हैं.
ख़ूबसूरत तुम ग़ज़ल हो, दिल की तुम आवाज़ हो.
तुमसे हूँ आबाद मैं, तुम ज़िन्दगी की साज हो.
सूरत तुम्हारी क्या कहूँ, परियों की तुम सरताज हो.
हुस्न हैं देखे मगर, हुस्न की तुम ताज़ हो.
लब पर बिजलियां खेलती, आँखों में पलता प्यार है.
गंगा की पावन गोंद में, ज्यों खेलता मझधार है.
संगमरमर सा बदन, उसमें शबाबे राज़ है.
मैं अपने दिल की क्या कहूँ, वो मेरे दिल की नाज़ है.
गेसुओं की छांव में, रुखसार यूँ आबाद है.
बादलों की ओट में, ज्यों मुस्कराता चाँद है.
ये गुलबदन ये नाज़नी, गुलशन सी तूं गुलज़ार है.
कुदरत की है तस्वीर तूं, तूं मेरे दिल की यार है.
हुस्न के दीदार को, ठिठका फ़लक पर चाँद है.
इस ज़मीं पर मुझसे बढकर, कौन ये महताब है.
तारीफ मैं करता नहीं, ये तो कही जो बात है.
चिलमन से ज़ालिम देखती हो, क्या गज़ब अंदाज़ है.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
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i luv this poem....lovely