बउराइल गुलाल (भोजपुरी) Poem by Upendra Singh 'suman'

बउराइल गुलाल (भोजपुरी)

बउराइल गुलाल सखी होली में,
चूमै गोरियन क गाल सखी होली में.

देवतन के पांवे पड़ल,
बाबा के सिर पे चढ़ल.
घुस गईल भाभी के चोली में,
बउराइल गुलाल सखी........................

सूरज के मुँह में लगल,
धरती क मांग सजल,
अरे, बइठल बा अम्मा की झोली में,
बउराइल गुलाल सखी........................

उड़त ह अम्बर में,
चहकै बवंडर में,
अरे, महकत बा रंग अउर ठिठोली में,
बउराइल गुलाल सखी........................

घरे-घरे घुम्म्त बा,
मस्ती में झूम्म्त बा,
कूदै हुड़दंगन के टोली में,
बउराइल गुलाल सखी........................

सररर गावत बा,
सबके चमकावत बा,
सजल बा देखा रंगोली में,
बउराइल गुलाल सखी........................

कईलय कमल देखा,
देखा धमाल देखा,
किलकय मजीरा के बोली में,
बउराइल गुलाल सखी........................
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Sunday, December 6, 2015
Topic(s) of this poem: festival
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