एम पी के बुढ़ऊ आका (भाग-२) Poem by Upendra Singh 'suman'

एम पी के बुढ़ऊ आका (भाग-२)

Rating: 4.0

अभी कल की बात है,
मैंने एक ख़ुफ़िया पत्रकार से पूछा –
अरे भाई, वो एम पी के बड़बोले बुढ़ऊ आका
एक राष्ट्रीय दल के धूम-धडाका
कहाँ खो गए?
लगता है जैसे कहीं भूमिगत हो गए,
पत्रकार अनुभवी था
दमदार था और आले दर्जे का समझदार था,
छूटते ही बोला –
प्रेमिका जब पत्नी की भूमिका निभाती है
तो बड़े-बड़ों की बोलती बंद हो जाती है.
वेसे भी, इस नई-नवेली में कई चमत्कार है,
वह पूर्व प्रेमिका, वर्तमान पत्नी, एक खूबसूरत पत्रकार है
और इस दौर में वे उसी के शिकार हैं.
कभी वो उन पर हुस्न की बिजली गिराती है
तो कभी बम- गोले बरसाती है,
अब, ऐसे में बेचारा पुरूष कैसे बोलेगा?
आप ही बताइये
कोई कैसे मुँह खोलेगा?

Saturday, December 12, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 December 2015

एक मजेदार व प्रासंगिक रचना.

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