दूर न मुझसे जाना Poem by Upendra Singh 'suman'

दूर न मुझसे जाना

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तुम दूर न मुझसे जाना, तुम दूर न मुझसे जाना.
होकरके दूर प्रिये तुमसे, तुमको मैंने पहचाना.

अब हँसी ठिठोली में भी, ना मुझको तुम बिसारना.
मैं भटकूं गर जीवन पथ मैं, तुम मुझको राह दिखाना.
तुम दूर न मुझसे जाना..................................

मैं नीरद हूँ तूं नीर मेरा, संगीत मेरा तूं मैं गाना.
सुर सौरभ मादक दे अपना, साँसों में मेरी बस जाना..
तुम दूर न मुझसे जाना...................................


मेरे तन-मन में अंतर में, भावों के मोती बिखराना.
तुझसे सुरभित मधुबन मेरा, तुझ बिन जग मेरा बेगाना.
तुम दूर न मुझसे जाना.....................................

तूं साज मेरे जीवन की, उर की तूं ठौर ठिकाना.
आसों में मेरी बसना, मन-मन्दिर में इठलाना.
तुम दूर न मुझसे जाना..........................

मैं खारे जल का सागर, सरि का मुझसे मिल जाना.
यह पावन पुण्य समर्पण, अदभुत अनुपम अनजाना.
तुम दूर न मुझसे जाना..............................

तूं दीपशिखा सी पावन, अदभूत तेरा रूप सुहाना.
ये चिर यौवन की धवल चांदनी, मैं हूँ तेरा मीत पुराना.
तुम दूर न मुझसे जाना........................

गीता रामायण तूं मेरी, तुझमें सीता की छवि पाना.
उर तेरा पावन वृन्दावन, मन मेरा गोकुल का कान्हा.
तुम दूर न मुझसे जाना.........................

मेरे जीवन की बगिया में, बन मोर ठुमक तुम इतराना.
अपनी सौन्दर्य सुधा बिखरा, मादक बसंत बन छा जाना.
तुम दूर न मुझसे जाना.................................

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Saturday, December 12, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
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