रसोई Poem by Ajay Srivastava

रसोई

राह यही सै जाती है सहमत भाव के मान की
यही बडाती है सहमत भाव के मान और सम्मान को|

सोन्द्रय के प्रक्रति रूप को निखार यही सै मिलता है|
सहसा अपनी और आक्रषित कर लेती है|

ईसी मे है परिवार को एक जुट करने की शक्ति है|
यही तो है सब सहमत भाव को नियञंण करने की कुंजी है|

माना की आधुनिकता अपना प्रभाव दिखा रही है|
पर आधुनिकता भी इसी के नियञंण मे रहेगी|

यह अपनो के लिए मान है और दूसरो के लिए ईर्षा हो जाती है|
इसमे नयी नयी चुनौतीयो पर जीतने की शक्ति है|

यह है स्वाद और सन्तोष का केन्द्र है|
क्यो कि यह है भारतीय रसोई|

इसका मूल्य मांग कर इसका मान कम न करे|
क्यो कि यह तो अमूल्य भारतीय रसोई है|

रसोई
Monday, December 14, 2015
Topic(s) of this poem: cooking
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