उलझ के अपनी बात में ये कंफ्युज़ हो गये
दिन में जले पर रात में ये फ्युज़ हो गये
चुंने गये थे देश में ये देश के लिये
पर-देश जा जाके बड़का न्युज़ हो गये
ये उल्लू बना जनता को होशियार हो गये!
फर्जी डिग्री दिखा के जमादार हो गये!
सम्भलने को तो बीवी भी मगर सम्भली नहीं!
पर जाने कैसे भारत के सरकार हो गये!
कि दंडे बरसते हैं यहां रोज़ कही पर!
कि दिल्ली बनारस हो या पटना हो मुज़फ़्फर!
एक गाय भी इनसे तो अब पाली नही जाती!
बस ढूंढते फिरते हैं ये तो गाय का गोबर!
देखो सूट-बूट डाल के ये साहब हो गये!
बनारसी जी लखनऊ के नवाब हो गये!
गरीबी सोये सड़को पर अब फिर से शान से!
ख़ुद भैया जी अब चोरों के सरदार हो गये!
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