बेशर्म सुबह Poem by Upendra Singh 'suman'

बेशर्म सुबह

बदचलन सुबह अब रोज
कुहरे के साथ सैर पर निकल रही है.
कल तक जो सूरज के साथ
जीने-मरने की कसमें खाती थी,
आज सरेआम उसे छल रही है.
बतानेवाले तो कुछ यूँ बताते हैं कि -
सुबह बेशर्मी की सारी हदों
को पार कर चुकी है.
विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि -
वह कुहरे के साथ कई रातें गुजार चुकी है.
बहरहाल,
बेबस सूरज उदास, चिंतित, निस्तेज
और लाचार है,
चाँद-तारों ने इस हालात पर अफ़सोस जताया है
और कहा है कि -
यह बेहद दुःखद समाचार है.

Thursday, January 7, 2016
Topic(s) of this poem: morning
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