मिठाइयों की दीवानगी Poem by Ajay Srivastava

मिठाइयों की दीवानगी

क्या खूब दिखती हो|
रस मलाई लगती हो|
यू तो तुम अच्छे लगते हो|
बिल्कुल लडडू दिखते हो|

येे जो तुम्हारे अधर है|
किसी काजू बर्फी लगते है|
हॉ तो तुम्हारे अधर है|
यकीनन मिल्क केक जैसे लगते है|

और तो और ये जो तुम्हारा वक्ष है|
सोहन हलुए से कम तो नही|
हॉ तो ये जो तुम्हारे लिए सोहन हलुआ लगता है|
हमारे लिए रसुगूला से कम तो नही|


ये जो तमने धारण कर रखा है|
किसी चमचम से कन तो नही|
हॉ तो तुम जो इतने आकर्षक लग रहे हो|
गजार केे हलुए की तरह लग रहे हो|


ये जो तुम इतना ईतरा रही हो|
बिल्कुल ईमरती लग रही हो|
और ये जो तुम शान दिखा रहे हो|
बिल्कुल गुलाब जामून लग रहे हो|


क्या खूब चलती हो|
बिल्कूल जलेबी लगती हो|
हॉ तो तुम भी खूब चलते हो|
शुद्ध देशी धी के लडडू दिखते हो|

मिठाइयों की दीवानगी
Monday, January 11, 2016
Topic(s) of this poem: encouragement
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