प्रमाण पत्र Poem by Ajay Srivastava

प्रमाण पत्र

Rating: 5.0

हाँ हुँ में स्वार्थी ।

नहीं मिलनी हाँ में हाँ ।

केवल और केवल मेरे हित की बात।

किसी और का भला तो बिलकुल भी नहीं ।

कोई भी नैतिकता पर उपदेश नहीं सुनना ।

आजादी और आजादी जो में चाहु वो करने की।

किसी नियम की कोई दुहाई नहीं सुननी ।

क्यों की मुझे नहीं बनना साधारण नागरिक ।

मुझे बनाना विशेष नागरिक सब कुछ गैर क़ानूनी करने का प्रमाण पत्र ।

कब दिलवा रहे हो विशेष नागरिक होने का प्रमाण पत्र ।

प्रमाण पत्र
Friday, October 16, 2015
Topic(s) of this poem: moral teachings
COMMENTS OF THE POEM
Abdulrazak Aralimatti 23 October 2015

Verily, the extraordinary whom we call are the one who have the certificate of all wrong doings...10

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Rajnish Manga 16 October 2015

आज के माहौल पर एक प्रभावशाली कटाक्ष. नैतिकता, नियम कानून का अनुपालन तो साधारण व्यक्तियों के लिए रह गया है, वीआईपी लोगों के लिए नहीं. एक अच्छी कविता के लिए धन्यवाद.

0 0 Reply
Ajay Srivastava 17 October 2015

धन्यवाद

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