खुशियां मिले जहाँ ऐसे दूकान देखे है।
खरीद कर खुशियों को होते परेशान देखे है।
मेहनत से तराशे पथरो को मैंने।
अक्शर लोगो को कहते भगवान् देखे है।
रहो में खड़े होकर रोज उसे।
घर का पता पूछते मैंने तूफ़ान देखे है।
नादान मुझे न समझिये साहब।
इतनी उम्र में मोहब्बत के सभी इम्तहान देखे है।
अजीब मौत मरते है ये आशीक भी।
थोड़े से गम से हारकर देते जान देखे है।
मोहब्बत में भी दरार डालती है ये मजहब भी।
जब लोगो को कहते हिन्दू औ मुसलमान देखे है।
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आप बहुत अच्छा लिखते हैं, विकी जी. इस गुलदस्ता-ए-ग़ज़ल की अन्य रचनाओं का इंतज़ार रहेगा. मेरी शुभकामनायें. (गुलदस्ता-ए-ग़ज़ल = ग़ज़लों का गुलदस्ता)
Thanks a lot sir.