कब, कहॉ और कोन Poem by Ajay Srivastava

कब, कहॉ और कोन

जीवन का आधार, सबकी आवशयकता है|
प्रसार का द्वार, विकास की राह है|

मिल जाह तो, सुख का आधार बन जाता है|
विस्तार का आरम्भ व भविष्य की योजना कार्यन्वित हो जाती है|

ना मिले तो, आवशयकता बन जाता है|
स्वपन व प्रयतन क्रिया अपना रंग दिखाती है|

भाग्यवान लोगो को मिलता है|
भाग्यहीन लोगो को नही मिलता|

रूप और रंग अनेक है|
कब, कहॉ और कोन सा रूप आपका स्वागत करेगा|

यह केवल समय ही जानता है|

कब, कहॉ और कोन
Monday, February 15, 2016
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success