तरसता - भारतवर्ष Poem by Ajay Srivastava

तरसता - भारतवर्ष

आवाज उठती है, चिंगारी बनती है।
सामूहिक आवाज बन जाती है, असर होता है।
निमंत्रण मिलता है बात चीत का माहौल बनता है।
विचारो का आदान प्रदान होता है, सहमति की और कदम बढ़ते है।

सहमति को कानून का प्रारूप दिया जाता है, दोषो में सुधर किया जाता है।
स्वीकीर्ति भी मिल जाती है, आवाज कानूनू का रूप ले लेती है।
जश्न का माहौल बन जाता है, शांति आ जाती है।
कानून की रौशनी में प्रगति की लहर की आशा दिल में छा जाती है।

हर ख़ुशी, संघर्ष व् जश्न का माहौल फीका हो जाता है, जब कानूनू का पालन नहीं होता।
वर्ष प्रतिवर्ष गुजरते जाते है, और हमारा भारतवर्ष विकास के लिए तरसता रह जाता है।

तरसता -  भारतवर्ष
Saturday, February 11, 2017
Topic(s) of this poem: progress
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