ये बोल Poem by Ajay Srivastava

ये बोल

ये बोल नहीं भाव है
भाव नहीं एहसास है
ये एहसास नहीं पहचान है


पहचान जो कुदृष्टि रखने वाले के अस्तित्व को हिला दे
पहचान जो कुदृष्टि रखने वाले को चुप रहने को विवश कर दे
पहचान जो सुविचार रखने वाले को एक माला की तरह संगठित कर दे

निजी स्वार्थ को त्याग देश हित को प्रेरित कर दे
जो सब जाती व् धर्म के भेदभाव को दूर कर दे
एक अनुभूति है जो हर भारतवासी को जाग्रत कर दे

ये बोल नहीं यह हर भारत वासी की श्रद्धा, विश्वास और शक्ति है

वन्दे मातरम, भारत माता की जय श्रद्धा है
वन्दे मातरम, भारत माता की जय विश्वास है
वन्दे मातरम, भारत माता की जय शक्ति है

ये बोल
Saturday, March 5, 2016
Topic(s) of this poem: patriotism
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