शीष झुकता ही है Poem by Ajay Srivastava

शीष झुकता ही है

यह तो सम्मान है |
देश भक्तो द्वारा मातृभूमि को |
जन प्रतिनिधि द्वारा शहीदो को |
जन समूह द्वारा भारतीय तिरगे को |

यह तो क्षद्धा है |
हर धर्म की पहचान है |
गुरू शिक्षा का प्रथम चरण है |
माता पिता के प्रेम का परिणम है |

यह तो स्वकृति है |
प्रेम समबन्धो का प्रारम्भ है |
असफलता का प्रमाण है |
हार का प्रतीक है |
अच्छे या बुरे कर्मो का परिणाम है |

शीष तो नत मस्तक/झुकता होता ही है |



प्रशन: हर पंक्ति में सर झुका हुआ है - हा या ना

शीष  झुकता ही है
Thursday, March 10, 2016
Topic(s) of this poem: question
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