ख्याब Poem by Larika Shakyawar

ख्याब

ख्याबों का दस्तूर खूब गजब है
कभी जोखिम, कभी रास्ते सहज है
कश्मकश से भरी ख्याबों की नगरी
अनजाने चेहरों के बीच खुद मैं अजनबी
अनजानी राहें गुमनाम सी मंजील
पल में काया पलट, पल में सब हासिल

Wednesday, March 16, 2016
Topic(s) of this poem: life
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Larika Shakyawar

Larika Shakyawar

Rajgarh M.P., India
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