प्रकृति Poem by Larika Shakyawar

प्रकृति

Rating: 5.0

कहने को चाँद में दाग है,
चाँदनी उसकी आज भी लाजवाब है|
कहने को मिट्टी धूल बन उड़ जाती है,
बारिश में इसकी सौंधी खुशबू सब को भाती है|
कहने को पतझड़ में पत्ते झड़ते है,
वही नयी जीवन का आह्वान करते है|
कहने को बादल गड़-गड़ गरजता है,
बरसता है तब हर कोई थिरकता है|

Sunday, March 20, 2016
Topic(s) of this poem: nature love
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Larika Shakyawar

Larika Shakyawar

Rajgarh M.P., India
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