कहने को चाँद में दाग है,
चाँदनी उसकी आज भी लाजवाब है|
कहने को मिट्टी धूल बन उड़ जाती है,
बारिश में इसकी सौंधी खुशबू सब को भाती है|
कहने को पतझड़ में पत्ते झड़ते है,
वही नयी जीवन का आह्वान करते है|
कहने को बादल गड़-गड़ गरजता है,
बरसता है तब हर कोई थिरकता है|