हमारे कदम क्या बहके |
सबके कदम एक ही सूर ताल मे आ गए |
सूर ताल से बहुँत ही कानून का सुरीला गीत बन गया |
हमारे दिल को भी धडकन का अहसास करा गया |
फिर क्या हमारे कदम फिर कदम बहक गए |
जो सबको एक सूर ताल कर दे क्यो न उसे ही अपनाया जाए |
हम भी तो सबकी चाहत और चाहतो की गहराई को देखे |
एक गुलाब का फूल क्या दिखाया उन्होने स्वतन्त्रता की दुहाई दे दी |
हमने गुलदस्ता क्या दिया उन्होने अधिकारो का सुर छेड दिया |
ये तो हमारी चाहत को प्रबल करने का प्रयास मात्र है |
हमने वाद विवाद का निमत्रंण दे डाला उन्होने एक भी कानून से असहमति प्रकट कर दी |
ऐ कानून तेरे चाहने वाले सुरीला गीत गाने वाले तो कागज के फूल से लग रहे है |
हम तो हम है इन्ही कागज के फूल से लगने वालो से खुशबू निकालने मे प्रयासरत है |
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem