कागज के फूल Poem by Ajay Srivastava

कागज के फूल

हमारे कदम क्या बहके |
सबके कदम एक ही सूर ताल मे आ गए |
सूर ताल से बहुँत ही कानून का सुरीला गीत बन गया |
हमारे दिल को भी धडकन का अहसास करा गया |

फिर क्या हमारे कदम फिर कदम बहक गए |

जो सबको एक सूर ताल कर दे क्यो न उसे ही अपनाया जाए |
हम भी तो सबकी चाहत और चाहतो की गहराई को देखे |
एक गुलाब का फूल क्या दिखाया उन्होने स्वतन्त्रता की दुहाई दे दी |
हमने गुलदस्ता क्या दिया उन्होने अधिकारो का सुर छेड दिया |
ये तो हमारी चाहत को प्रबल करने का प्रयास मात्र है |
हमने वाद विवाद का निमत्रंण दे डाला उन्होने एक भी कानून से असहमति प्रकट कर दी |

ऐ कानून तेरे चाहने वाले सुरीला गीत गाने वाले तो कागज के फूल से लग रहे है |
हम तो हम है इन्ही कागज के फूल से लगने वालो से खुशबू निकालने मे प्रयासरत है |

कागज के फूल
Monday, March 28, 2016
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