छीना नही Poem by Ajay Srivastava

छीना नही

कभी हमे भी पसन्द किया करो
हम भी तो खुबसूरत और आकर्षक है|
मासूमीयत मे हम किसी कम नही
तुम्हारी जरूरत का साधन है|
हम तो विरोध भी नही करते
न ही हमारी इच्छाए अनेक|
न ही धर्म के लिए आपस मे लडते
न ही हमे सत्ता व धन का मोह|
हमे तो हमारा जगल ही सबसे प्यारा
ऐ मनुष्य क्यो तुम हमारे जगल छीनते
हमने तो कभी तुम्हारे घरो को छीना नही!

छीना नही
Wednesday, April 20, 2016
Topic(s) of this poem: forest
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success