जब गुम हो जाते हो अलफ़ाज़,
जब थिरकती गुनगुनाती कानो में दस्तक देती,
सांसो की आवाज़,
जब कौन्दति हो सोच, खुद से पूछती,
तेरे भीतर कोई रोग है क्या?
या बेचैनी का पैमाना है?
कैसे कहू की मेरे अंदर भी एक अहाना है,
जो मेरे इश्क़ करने का बहाना है I
कोई सोचता हो तो सोचे,
कोई कहता हो तो कहे,
झूठ ही है अगर इस दिल में किसी का रहना,
आखिर ये भी तो मेरा ही आशियाना है,
किसी ने घर तो बसाया, आखिर कोई तो है,
जिसका यहाँ रोज़ आना जाना है,
कैसे कहू की मेरे अंदर भी एक अहाना है,
जो मेरे इश्क़ करने का बहाना है I
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