फिर देख! Poem by Ajay Srivastava

फिर देख!

बहुत ही जिद्दी है|
बहुत ही निर्लज्ज है|
बहुत ही दुसाहसी है|
बहुँत ही दुख दायी है|
बहुत ही धमंडी है|

न तो यह नेता न ही अभिनेता की सुनता|
न तो यह प्रशासन की न ही जुर्माने का डर|
न तो यह न्याय व्यवस्था न ही कानून की सुनता|
न तो यह प्रचार तंत्र न ही जनता की सुनता|

ऐ भ्रष्टाचार, ओ मुसीबत तू ये तो बता, कब भारत को छोड कर जाऐगा|
सोचता है क्या, बस भारतवासीयो एक बार जगने तो दे फिर देख!

फिर देख!
Wednesday, June 1, 2016
Topic(s) of this poem: realisation
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