सफेद चाक हूं मैं Poem by kumar mukul

सफेद चाक हूं मैं

समय की
अंधेरी
उदास सड़कों पर
जीवन की
उष्‍ण, गर्म हथेली से
घिसा जाता
सफेद चाक हूं मैं

कि
क्‍या
कभी मिटूंगा मैं

बस
अपना
नहीं रह जाउंगा

और तब

मैं नहीं

जीवन बजेगा
कुछ देर

खाली हथेली सा
डग - डग - डग...

Friday, July 1, 2016
Topic(s) of this poem: life and death
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Life
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