एक छोटा सा संवेदन है Poem by Shashi Bhushan Kumar

एक छोटा सा संवेदन है

एक छोटा सा संवेदन है
करुणा है और बस रुदन है
हाथों में प्याला भावों का
होठों पर आत्म निरीक्षण है
यह समय बड़ा ही विलक्षण है
चिड़िया आती है गाती है
सब अपने घर को जाती है
हम खड़ा यहां यू बाट जोहते
क्या मान लूं मैं मधुशाला को
अपने कवि की उस रचना को
पथिक बनू और चल दूं राह को
एक पकड़ के सीधा
शर्त मगर मेरी इतनी है
साथ रहे मेरी पीरा
और गीत बने मेरी हाला
शर्त मगर मेरी इतनी है याद रहूं मैं तुझको
भूलना चाहो फिर भी तुम भूल न पाओ मुझको
शर्त मगर मेरी इतनी है साथ रहे मेरी पीड़ा
और गीत बने मेरी हाला
उसको भी हैं हक हम पर वह भी तो जान लूटाती है
बिना बुलाए ही मेरे पास हमेशा आती है
मदीरा का है शौक मगर मधुशाला को नहीं जाना
संभव हो तो घर भिजवादो व पुरानी प्याला
वापस कर दो मेरी बिखरी व प्यारी सी हाला //

एक छोटा सा संवेदन है
Tuesday, July 19, 2016
Topic(s) of this poem: poems,poet
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