उनका नंबर आया ही नहीं,
क्या करू हमे कोई और भाया ही नहीं,
तकती रही रात भर वो अधूरी आंखें,
पलकों को उमड़े आँखों से लगाया ही नहीं I
उनका नंबर आया ही नहीं,
क्या करू हमे कोई और भाया ही नहीं,
वो मिलती रही रोज़, हमने नज़राना चुकाया ही नहीं,
करती होगी ऐतबार मगर दिल तक कोई आया ही नहीं,
जो कभी देखा भी उनको, वो चेहरा लुभाया ही नहीं,
उनका नंबर आया ही नहीं,
क्या करू हमे कोई और भाया ही नहीं,
रिश्ता निभाना था सो निभा दिया,
लगा क़र्ज़ लिए था कुछ, सो ब्याज चूका दिया,
मगर भूल गए की मूल तो चुकाया ही नहीं,
खाई थी २ ४ कसमें कभी, याद आया ही नहीं,
उनका नंबर आया ही नहीं,
क्या करू हमे कोई और भाया ही नहीं,
मुझसे नफरत नहीं है उसको,
जैसे कोई जुर्म उसपे ढाया ही नहीं,
न ही है कोई शिकवा,
जैसे मोहतरमा ने आंसू बहाया ही नहीं,
जो इज़्ज़त थी मेरी महफ़िल में, आज भी है
लगता है जैसे वक़्त को दावत पे बुलाया ही नहीं,
उनका नंबर आया ही नहीं,
क्या करू हमे कोई और भाया ही नहीं,
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