तुझे मैं भूल जाऊ भला कैसे Poem by sanjay kirar

तुझे मैं भूल जाऊ भला कैसे

काँटों से भरे जीवन में जो लेकर आया नए मोती
साँझ से पथ पर सुधा की लाया जो नई ज्योति
जीवन के नए व्याकरण जिसने खुद को तज कर बनाये

मेरे साथी तुझे में भूल जाऊ भला कैसे
मैं निरर्थक था, अर्थो का मोल कब जाना
एक प्रेरणा के नाम जैसा तुमको सदा माना
जब तूफानों के समूहों ने मुझको डराया
वक्त ने चतुरंगनी सेना का जाल बिछाया
तब तुमने मेरी कलम को सर्वज्ञ बताया
आज मैं उस कृत्य का भार चुकाऊ कैसे
बताओ मेरे साथी तुझे में भूल जाऊ भला कैसे।

दिन निकलने से पहले जो मेरे मन मानष में छिपा हो
जो मेरी उर्मियो के समूहों में झोको सा रहा हो
जो मुझे मुझसे पहले पूरी तरह जान पाया
बस इतना ही था उसका मेरे जीवन पर बकाया

क्यों नहीं तुमने मुझपर अपना पूरा हक़ जताया
इस समर्पण के द्वार पर तुमको छोड़ जाऊ भला कैसे
बताओ में मेरे साथी तुम्हे मैं भूल जाऊ भला कैसे।

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