'जग-जननी नारी तेरा जय हो' Poem by Alok Mishra Farista

'जग-जननी नारी तेरा जय हो'

मोहित रूप प्रदान किया,
जग-जनने की शक्ति भी...
ईश्वर ने तेरे नाम किया,
जग-जननी नारी तेरा जय हो |

दिल में कोमलता का,
वास भरा कूट-कूट कर...
फिर आँखों में माया का,
विशाल जाल तैयार किया |

आवाजों में भरी मधुरता,
फिर साँसों में प्यार भरा...
जग-जननी तेरे मन से ही,
इस सृष्टी का उद्धार हुआ |

तेरे विचारो की शीतलता से ही,
परिवार को एक नया नाम मिला...
कैसे करती हो ये सब,
कैसा है ये वरदान मिला |

बचपन बीते चल भावों से,
डर भावों से बीता यौवन...
तिस्कृत हुई पीहर में भी तू,
ससुराल में भी ना सम्मान मिला |

फिर भी हँसती रहती हो,
सबको प्यार-सम्मान दिया...
इतना कुछ कैसे सहती हो तुम,
कैसा है ये वरदान मिला |

बच्चे जब जन्म लिए तो,
उसे बाप का नाम मिला...
सब कुछ सहा था तुमने पर,
तुमको क्या पहचान मिला |

लाड-प्यार-दुलार सब वो,
तुमसे ही तो पाते है...
जब कोई पुछे कौन हो तुम,
तो पापा का नाम बताते है |

जिस घर में तु बड़ी हुई,
उसमे सिर्फ यादें रह जाती है...
माँ-बाप-भाई सब गैर हुए,
जब पति के घर तु जाती है |

सास-ननद की ताना सुनती,
ससुर भी बहुत सुनाता है...
पति को जब ये सब बोलो तो,
वो हँस कर चुप हो जाता है |

घर-द्वार का काम पुरा कर,
जब तुम चुपके से आती हो...
लाड़-दुलार कर बच्चों पे,
कितना प्यार लुटाती हो |

तेरे सहने की क्षमता का मै,
कोटि-कोटि नमन करता हूँ...
तेरी आँखों की करुणा का मै,
दिल से अभिनन्दन करता हूँ |

रूप नहीं हो बस तुम,
जग की सच्ची साया हो...
इस संसार को रचने वाली,
जग-जननी माया हो |

नि: शब्द हूँ, स्तब्ध हूँ,
बस जय-जय कार मनाता हूँ...
कैसे कर पाती हो ये सब,
कभी समझ ना पता हूँ |

Tuesday, March 28, 2017
Topic(s) of this poem: dedication,feelings,love,sacrifice,sad,women
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