रात चांदणी पड़या एकला, उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा Poem by Manish Shokeen

रात चांदणी पड़या एकला, उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा

Rating: 5.0

ज़बान कटी इश्क़ तेरे की
मैं गूंगे गले तै गा लयूंगा..
रात चांदणी पड़या एकला
उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा...

कड़ै गया वो मेरे तै सोहणा
वो मख़ौल जता के बुझैगा
नाड़ झुकाये खड़या रहूँगा
उस बखत बता के सुझैगा
मैं नन्ही नन्ही उन बूंदा मैं
कैसे बिना तेरे नहा लयूंगा

रात चांदणी पड़या अकेला
उलहाणे चाँद के, खा लयूंगा

ज्यब चालै पुरवा सीली सीली
या मन्द नब्ज़ भी थम ज्यागी
ये होंठ तरस ज्यां उन होंठा नै
हां सांस बेमौसमी जम ज्यांगी
बेशक ज्यान गवाणी पड़ ज्या
पर मन अपणा समझा लयूंगा

रात चांदणी पड़या एकला
उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा...

रात चांदणी पड़या एकला, उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा
Wednesday, March 29, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 29 March 2017

बेशक ज्यान गवाणी पड़ ज्या पर मन अपणा समझा लयूंगा इस खुबसूरत गीत की जितनी प्रशंसा करूँ कम है. बहुत बहुत धन्यवाद व बधाई आपको, मनीष शोकीन जी.

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