इस इक ज़िन्दगी में, ना जाने कितनी ज़िन्दगी जी लिया Poem by ainan ahmad

इस इक ज़िन्दगी में, ना जाने कितनी ज़िन्दगी जी लिया

Rating: 4.5

इस इक ज़िन्दगी में, ना जाने कितनी ज़िन्दगी जी लिया
कभी मंज़िल को रास्ता बनाया, तो
कभी रस्ते को मंज़िल बना लिया
किसी राही को हमसफ़र समझकर क़दमो से क़दम मिलाया, तो
कहीं हमसफ़र को राही समझकर, किसी मोड़पर तनहा छोड़ आया
ना मिलेगा कुछ इस जहां में मुझे
इस ना- उम्मीदी की कुफ्र में, मंज़िल से खुद को मोड़ लाया
कभी किस्मत को बे -वफ़ा कहा, तो
कभी महबूब की बे -वफाई को सहारा बना लिया
कुछ इस तरह खुद को, हमने आवारा बना लिया
कभी मंज़िल को रास्ता बनाया, तो
कभी रस्ते को मंज़िल बना लिया

Sunday, April 2, 2017
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Jazib Kamalvi 23 October 2017

A refined poetic imagination, Ainan. You may like to read my poem, Love And Lust. Thank you.

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