लिखा था जिस्मे तुम्हारा नाम
हाँ वही तकदीर हमारी थी
लाई ग़ज़ल जो रंग ए जमाल
वो लाल सियाही हमारी थी
बेशिकवा सहे हर ज़ुल्म हमने
खुदा कैसी फितरत हमारी थी
चाहत में क्या मरता है कोई
हाए कैसी ये किस्मत हमारी थी
रोया क़ैस भी सिसक कर लिपट कर
सुनी जब दास्ताँ हमारी थी
इश्क़ में मरना मुअय्यन तो था
वो जो मुझे जान से प्यारी थी
तीसरी मिटटी जब ऊपर पड़ी तलब
तब माना नहीं जान हमारी थी
जमाल = Beauty
फितरत= Nature
क़ैस= Majnu
मुअय्यन = Definite
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