कुछ फासले तन्हाई इक ग़ज़ल अधूरी है Poem by Talab ...

कुछ फासले तन्हाई इक ग़ज़ल अधूरी है

कुछ फासले तन्हाई इक ग़ज़ल अधूरी है
अब ज़िन्दगी में थोडा गम भी ज़रूरी है

ये अदा मुंह फेर कर चल दिए जान ए जान
मुहब्बत में थोड़ी शर्म भी ज़रूरी है

मिट जाएंगे हस्ते हुए बाँहों में तेरी
जन्नत पाने को ये करम भी ज़रूरी है

ऐसे ही मेरे पास बैठो कुछ ना कहो
इश्क़ में ख़ामोशी सनम भी ज़रूरी है

ऐसे ही नहीं समझते लोग तुझको खुदा
अपनी बंदगी का कुछ भरम भी ज़रूरी है

यूँही नहीं बनता कोई मसीहा यहां
दर्द मंदों को मरहम भी ज़रूरी है

क्यों बेसबब तलब को कहते हो मैकश
कुछ उसका ऐसे लड़खड़म भी ज़रूरी है

भरम = Trust
बेसबब = Without reason

Tuesday, February 21, 2017
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success