इक नयी ग़ज़ल तुम सुनाओ तो अच्छा लगे Poem by Talab ...

इक नयी ग़ज़ल तुम सुनाओ तो अच्छा लगे

इक नयी ग़ज़ल तुम सुनाओ तो अच्छा लगे
पास बैठो गुनगुनाओ तो अच्छा लगे

पहचान की चमक आँखों में ना सही
ज़रा देख कर मुस्कुराओ तो अच्छा लगे

कह दूँ दुनिया से तुम मेरी हो मगर
अगर तुम बुरा न मानो तो अच्छा लगे

अपने ही हाथों में है अपना नसीब
आप ही उसको सवारो तो अच्छा लगे

कौन किस का हुआ है दुनिया में लेकिन
तुम अपना मुझे बनाओ तो अच्छा लगे

मेज़बानी ए वाईज में होता है क्या दम
खुद न पियो पिलाओ तो अच्छा लगे

दुआ यही की लागे तुझे भी रोग मेरा
मिले तुझको भी वही तलब तो अच्छा लगे

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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