अजन्मी बिटिया की जुबानी Poem by Larika Shakyawar

अजन्मी बिटिया की जुबानी

Rating: 5.0

क्षण भर ना देख पाई मैं दुनिया
पनप रही थी इस आस में,
कब होगा महसूस स्पर्श पहला
खेलूंगी माँ की गोद में,
समझ ना पाई कसूर क्या मेरा,
मिटा दिया गया अस्तित्व
माँ की कोख में!

Saturday, May 6, 2017
Topic(s) of this poem: social injustice
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Larika Shakyawar

Larika Shakyawar

Rajgarh M.P., India
Close
Error Success