नन्ही परी
शबनम की मलिका, परीयो की रानी
प्रतीक बनी तू नव रचना की ।
नन्ही मुन्ही, तू मासूम कली
चंचलता की तू विम्ब बनी ।
तू बूँद बनकर, आज जो टपकी
कल तू सागर बनजाओगी ।
तू सिर्जना दो यौवन का
तू प्रतिफल, अमर प्रेमका ।
हात तेरी, कितनी नन्हा
और पैर, वो भी नन्हा ।
जब तू हिलाती, दोनो एक साथ
छलकी खुशी, देखकर तेरी ये खेल ।
लोरी गाकर, कभी तुझे सुलाता
कभी हिलाकर, तुझे फिर जगाता ।
अतीत गर्भ का व्दार खुला जैसा
बचपना आगया, हम सब में ऐसा ।
तेरी पलको की छावमें, सपनो की गली में
निदिया रानी, तुझमे समाए ।
सावधान मैं हवा को कह दू
तुझे न जगाए, तेरी सपनो से ।
ये मेरा दोनो बाहे
झुला बने तेरी लिए ।
हात पाव टेककर मैं
घोडा बनू वह भी तेरी लिए ।
हम्हारा दिल का तू एक टुकडा
अमानत है, फिर भी किसी और का ।
एहसास यहीं, हम सब को रुलाता
अजीव दस्तूर, ये दुनिया का ।
मुस्कान तेरी, निद में कितनी अच्छि
बोलु मैं सब को, तू खूबसूरत कितनी ।
निछावर कर दुगा हम्हारा जीवन
छोटी सी छोटी, तेरी खुशीयों के लिए ।
फूलो कि रानी, तू खिले हर दिन
खुशबू से महके, हम्हारा छोटासा बगीयन ।
नव भविश्य, नव उम्मीदे
मिलकर समाया, तेरी अन्डर ।
रोती तू, तडपता हम सब
समझ ना पाया, ये सब हम ।
अपनापन का, ये जो नाता
रीत हैं, ये सब अपनापन का ।
अमृत धार, तुझे सदा मिले
मातृत्व सुख, सदा सलामत रहे ।
ममता के छाव मे, तू सदा खिले
गोद पिता के, तुझे हरपल मिले ।
नन्ही परी तू, मलिका हम्हारी
नयनो का ज्योति, दिल की धडकन ।
नव भविश्य, नव दृष्टिका
निर्मल तू, निश्छल तू ।
अम्बर से उतरी तू, हम्हारा आँगन में
महक गया हवाय, तेरी खुशबू से ।
तू जो दिप शिखा, लेकर आई
मित गया अंधेरा, छाइ दिपवााली ।
दिल की दर्पण में, बसा हुआ
तू हैं हम्हारी, नन्ही परी ।
प्रतीक बनके आई तू
हम्हारा ममता और करुणा का ।
कभी तू बनती लाजवन्ती
कभी तू बनती स्नेहलता ।
मासूम तेरी, ये सब अदाए
देखने को हर कोई ललचाय ।
तेरी आगे कौन नहीं झुकता
धर्ती तल के हर कोई मानव ।
हर कोई तरसता, तुझे चुमने को
मासूम कली तू, नव जीवन का ।
रचनाकार तुल्सी श्रेष्ठ
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