प्रतिरूप Poem by Bhuvan Rohatgi

प्रतिरूप

जिसने हमको जीवन के, रस्ते सभी दिखाए हैं,
खुद सब कुछ सह के भी, सब सुख हमे दिलाएं हैं, ,

दिन भर थक कर काम किया, रात को हमे सुलाया है,
जो भी हमने चाहा जब भी, सब कुछ हमे दिलाया है, ,

कभी न माँगा हमसे कुछ भी, कभी न कुछ उम्मीद करी,
ना संजोया अपने लिए कुछ, हर दम हमारी जेब भरी, ,

जब भी कोई गलती हमने की बड़े प्यार से समझाया,
खेल खेल में जीवन का, सब गूढ़ रहस्य बतलाया, ,

कुछ सपनो की खातिर जब हम, उनका हाथ छुड़ा आये,
व्यथित तो हुए बहुत मगर वो हमे देख के मुस्काये, ,

उनसा ना होगा तो होगा ना वो, भगवान जिसे सब कहते हैं,
पूजते नही बस उन्हें कभी हम, मंदिर जाते रहते हैं, ,

व्याख्यान करूँ उनका मैं कैसे, शब्द कहाँ से वो लाऊँ,
धन्य भयेगा जीवन ये, प्रतिरूप जो उनका बन पाऊँ

Monday, May 22, 2017
Topic(s) of this poem: father,mother,parents
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