वसुधा मौन है Poem by vijay gupta

वसुधा मौन है

सूरज अस्ताचल की ओर
क्षितिज के पार जाता हुआ।

धूप दामन बचाती
सिमटी-सिमटी नजर आ रही।

संध्याकाल की आहट
जोरों पर है।

कुछ ही समय बाद
तिमिर का साम्राज्य छा जाएगा।

तारा गण टिमटिमाते
वसुधा की ओर निहारते।

कुछ पूछ रहे हैं
वसुधा मौन है।

मानव चंचल है
विकास और विनाश-कार्यों
की ओर उन्मुक्त है।

फिर भी हमारी
वसुधा मौन है।

तमाम उम्मीदों से भरा
उसाकाल आएगा।

तारागण सूरज की
रोशनी में डूब जाएगा जाएंगे।

संध्याकाल के बाद
वो फिर आएंगे।

पूछने के लिए
कि वसुधा तू क्यों मौन है।

Thursday, May 25, 2017
Topic(s) of this poem: nature
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vijay gupta

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meerut, india
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