कैसे श्रंगार लिखूँ Poem by Anoop Pandit

कैसे श्रंगार लिखूँ

कैसे श्रंगार लिखूँ ऐसे हालातों में
जाने क्या रखा है इन प्यार की बातों में

फैली महँगाई है कैसी मंदी छाई है
कैसे भागे ये भूत असर नहीं लातों में
कैसे.........

मेरे देश के ये नेता हमको बहलातें है
हम क्यूँ आ जाते हैं बेकार की बातों में
कैसे............

इनको भी मिले उनको भी मिले ये आरक्षण
हम सबको बाँटा है क्यूँ तुमने जातों में
कैसे...........

भ्रष्ट आचारों के चाक सब मिलके चलाते है
हर रोज हम पिसते है उस चाक के पाटों मे
कैसे.............

उजले से चेहरे है दिन के उजालों में
काली करतूतें है अंधियारी रातों में
कैसे........

हर दिन में होली थी हर रात दीवाली थी
अब कैसे मनाएं पर्व हम है अवसादों में

कैसे श्रंगार लिखूँ ऐसे हालातों में।




अनूप शर्मा 'मामिन'

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आज के दौर में एक सार्थक प्रयास! शायद ।
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