मेरी रातें लम्बी होती हैं Poem by Dr. Sandeep Kumar Mondal

मेरी रातें लम्बी होती हैं

सपनो में सपने देखे हैं मैंने
कुछ अनछुए तो कुछ नागिन सी दस्ते हुए
कुछ पतझर के मौसम सी
गुमसुम बेजान उम्मीदों से भरे हुए
तो कुछ पहली बरखा सी
सूख्स्म शीतल संकोच से भरे हुए
सपनो में सपने देखे हैं मैंने I

कभी अचानक टूट जाने का खौफ भी था
तो कभी सुकून भी हुआ की ये महज़ एक सपना ही था
कभी एक अंजान चेहरा दहशत का कारण बना
तो किसी परिचित ने काले परदे पे किलकारियां भी बाँट दी
सपनो में सपने देखे हैं मैंने I

छनभंगूर है ऐसा लोग कहते हैं
बशर्ते कुछ पल के लिए जीवित होने का ढोंग करते हैं
मेरे लिए ये महज़ ख्वाब नहीं
कभी प्रेत बन के सताया भी था
तो कभी प्रेरणा बन कर जगाया भी
कभी खौफ से रूबरू कराया भी
तो कभी प्रेम को करीब से पाया भी
सोच को टटोला तो समझा
मुझमे कुछ हिस्सा इन सपनों का भी था

कहते होंगे लोग की ये छणिक हैं
मेरे लिए मानसिकता का आकस्मिक प्रतिबिंबा है ये सपनें
सपनों में सपनें देखे हैं मैंने I

Saturday, June 3, 2017
Topic(s) of this poem: dreams
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Dr. Sandeep Kumar Mondal

Dr. Sandeep Kumar Mondal

dhanbad, jharkhand
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