छाती पर बिठाये, , सीने से लगाये, ,
धूप बारिश तूफानो से बचाए, , ,
मगर फिर भी वो चिड़िया उड़ जाए, , ,
तो शाख क्या करे, , ,
.
उसकी आग को वो खुशनुमा बाहार करदे
खुदके पहलू में लेके ऐसा सृंगार करदे
मगर फिर भी सूरज ढल जाए...
तो शाम क्या करे
.
.सच्चे जूठे उल्टे सीधे सब नुस्खे अपनाये...
नंगे पांव तो कभी आग से जिस्म जलाये...
मगर फिर भी कोख सुनी ही रही हाए..
तो बांझ क्या करे....
.....
पानी से नैना लड़ाये...
जल में मिल, जल ही जाए...
मगर फिर भी पानी पिघल ना पाए.
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तो आग क्या करे..
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जीवन में कभी कभी आने वाली असहायता और विडंबनाओं का बहुत सुंदर चित्रण. धन्यवाद, मंजीत जी.
Dhanyawad