गरीबी Poem by Larika Shakyawar

गरीबी

गगनचुंबी अभिलाषा लिये
नन्हे कदम दुर्भाग्यवश​,
गरीबी रूपी अमावस्या निशि में
शशांक से लुप्त हो गए।

Wednesday, June 28, 2017
Topic(s) of this poem: dreams,poverty
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गरीबी के चलते कहीं बच्चों के अरमान आगे ऊंची शिक्षा प्राप्त करना एक सपना बनकर रह जाता है, फिर ऐसे कुछ नाम गुमनाम हो जाते है।
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Larika Shakyawar

Larika Shakyawar

Rajgarh M.P., India
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