आंसू Poem by Ajay Srivastava

आंसू

मेने बहुँत समझाया अपने आप को
अनुरोध न करु पर करा
थोडी सी मरहम का अहसास करा दू
पर फिर भी न रोक सका 11

अपने भावो को छुपा लू
पर ये बेरहम सामने भी कोई है
इसकी भी समझ नही है इनको
एक आखिर कोशिश की बाहर न निकल पाए
पर असफलता ही हाथ लगी 11

और आंखों से यह आंसू टपक ही पडे
और दिल व दिमाग को कुछ राहत का अहसास हुँआ 11

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success