हर पल मैं मरता रहा Poem by Tulsi Shrestha

हर पल मैं मरता रहा

हर पल मैं मरता रहा
कौन हूँ मैं, कैसे पूछु दर्पण से
जब परछाई हीं मेरी रुठकर चली ।
जख्म क्या हैं यारों, यह मत पूछो
यह तो मौत का सौगात हैं, जो अपनो ने दी ।
प्यार तो मैं ने, जीवन से हीं की थी
मौत बीच मे, कब आ टपका ।
रेगते कीड़ा बना मैं, खुद की नजर में
अपमान का प्याला पिकर मेैं ।
हर पल मैं मरता रहा, मरता रहा- -
बना बलिका बकरा मैं, प्यार के इम्तिहान में
खुद लाश बनकर, गिध्दों को खिलाता रहा ।
रोदन मेरा दब गया, मंदिर के घण्टो के गूजं से
मैं अपनो के बीच मे हीं, हो गया बेगाना ।
बेबफा तू निकली, बेबस मैं बना
जिंदा तो कब था मैं, फिर भी ।
पल पल मरकर भी, जी रहा हम
वह भी तेरी याद में, वह भी तेरी याद में ।

रचनाकार ः——तुल्सी श्रेष्ठ

Friday, July 14, 2017
Topic(s) of this poem: god,life
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