ऐ जिंदगी Poem by Larika Shakyawar

ऐ जिंदगी

Rating: 5.0

बेधड़क, बेहिचक, उल्लास के साथ जीती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
चारदीवारी​ के बीच बैठे उदास, हठी को भी खिलखिला देती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
बच्चों के बीच बच्ची, बड़ों के बीच बड़ी,
जैसों के बीच वैसी बन जाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।

हवाओं की दिशाओं के साथ लचकती, मटकती​ हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
चहकते पंछियों की राग के साथ अपने सुर मिलाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
बारिश के मौसम का बाँहें फैला कर भरपूर आनंद उठाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।

खुले आसमान के नीचे
चाँदनी ओढ़े खुद से बात करती,
खुद पर हसँती,
ठंडी-ठंडी हवा, चाँदनी का लुफ्त उठाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।

उछलती, कूदती,
हर दिन हर्षोल्लास के साथ बिताती हूँ,
तुझे जी भर के जीती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।

Thursday, July 20, 2017
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 20 July 2017

एक युवा ह्रदय की उमंग व एक उन्मुक्त जीवन का हर्ष और उल्लास इस कविता में साफ़ नज़र आता है. बहुत सुंदर. धन्यवाद. उछलती, कूदती / हर दिन हर्षोल्लास के साथ बिताती हूँ, तुझे जी भर के जीती हूँ मैं / ऐ जिंदगी।

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Larika Shakyawar

Larika Shakyawar

Rajgarh M.P., India
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