बेधड़क, बेहिचक, उल्लास के साथ जीती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
चारदीवारी के बीच बैठे उदास, हठी को भी खिलखिला देती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
बच्चों के बीच बच्ची, बड़ों के बीच बड़ी,
जैसों के बीच वैसी बन जाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
हवाओं की दिशाओं के साथ लचकती, मटकती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
चहकते पंछियों की राग के साथ अपने सुर मिलाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
बारिश के मौसम का बाँहें फैला कर भरपूर आनंद उठाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
खुले आसमान के नीचे
चाँदनी ओढ़े खुद से बात करती,
खुद पर हसँती,
ठंडी-ठंडी हवा, चाँदनी का लुफ्त उठाती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
उछलती, कूदती,
हर दिन हर्षोल्लास के साथ बिताती हूँ,
तुझे जी भर के जीती हूँ मैं
ऐ जिंदगी।
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एक युवा ह्रदय की उमंग व एक उन्मुक्त जीवन का हर्ष और उल्लास इस कविता में साफ़ नज़र आता है. बहुत सुंदर. धन्यवाद. उछलती, कूदती / हर दिन हर्षोल्लास के साथ बिताती हूँ, तुझे जी भर के जीती हूँ मैं / ऐ जिंदगी।