तागा Poem by Larika Shakyawar

तागा

गले में दमकती मनकों की माला,
मनकों के इस छोर से उस छोर तक
गुजरता पतला सा तागा।
कौन याद रखता तागे के सफर को​?
मनकों की सुंदरता लुभाती हर मन को।

सफर में रहते ऐसे कई तागे
मनकों को बाँध के रखते,
माला की सुंदरता बढ़ाते,
पर छिप जाते मनकों के पीछे।

ऐसे अदृश्य हो जाती
तागे के सफर की कहानी,
जब टूटकर बिखरती मनकों की माला,
तब पता चलती तागे की अहमियत,
और सफर की कहानी।

Monday, July 24, 2017
Topic(s) of this poem: life
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Larika Shakyawar

Larika Shakyawar

Rajgarh M.P., India
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