मेरी गलती Poem by Dr. Sandeep Kumar Mondal

मेरी गलती

तुम्हे पहली बार देखना महज़ एक इत्तेफ़ाक़ ही था,
पसंद आना, मेरी गलती I
तुमसे बात करने की चाह मेरी चाहत तो थी,
उसे मुक्कमल करना, मेरी गलती I
तुम्हारे हाथों को किसी के हाथों में पाना,
तकलीफ का सबब, मेरी गलती I
तुम्हारे इश्क़ में बेखौफ इज़हार.
मोहोब्बत है ये कहना, मेरी गलती I
समाज को भूल, तुम्हे ज़िन्दगी भर के लिए अपना मान लेना,
एक हमसफ़र की चाहत, मेरी गलती I

लेकिन इन गलतियों के ताक पर, मैंने खुद को पाया
तुम्हारी तकलीफों को हमेशा अपना बनाया,
अब गलती तो गलती ही सही
इस गलती की सजा मुझे मंज़ूर है I

कोई कितना भी कहे, एक बात तो तय है
तुम ही थी और तुम ही रहोगी
ये बार बार दोहराना, मेरी गलती I

Thursday, August 24, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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Dr. Sandeep Kumar Mondal

Dr. Sandeep Kumar Mondal

dhanbad, jharkhand
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